Tuesday, July 31, 2018

तलाश है एक घर की!

एक अदद घर की तलाश है
एक घर...
जहां सुरक्षित हो हमारा मन
हमारे सपने
हमारी उम्मीदें
हमारा अस्तित्व

वैसे तो...
बड़े जतन से ढ़ूंढ़ा था मौजूदा घर
अच्छा है यह...
सुबह सबेरे धूप दस्तक देती है
दरवाजा खोलते ही हवा चुपके से अंदर आती है
बालकनी में खड़े होकर
कभी आसमान से बातें
तो कभी दूर खड़े  दरख्त से
कोई नहीं दखल देता इसमें
बादलों का डेरा न हो तो,
आते जाते चांद भी मुस्करा देता है
दीवारों से बारिश के पानी भी नहीं टपकते
औ' रातों को अंधेरे साये भी नहीं डराते...

पर डर का एक टूकड़ा
फिर भी घूस गया है मेरे अंदर
घर की दीवारें नहीं रोक पाई उसे
नहीं रोक पाई मन को दरकने से
नहीं रोक पाई सपनों को चटकने से
नहीं रोक पाई उम्मीदों को भटकने से
वैसे दीवारें अभी दुरुस्त हैं
खिड़िकयां, दरवाजों पर सांकल चढ़े हैं
उसके बावजूद
सामने खड़ा है अस्तित्व के बिखरने का डर

एक घर ऐसा हो काश,
जहां घुसने न पाए...
'पाश' की पंक्तियों का परचम लहराने वालों की साजिश
सत्ता को आईना दिखाने वालों का अहंकार
मीठे शब्दों की चाशनी में डूबोए खंजर थामे हाथ
वाकई एक घर हो ऐसा...
जहां घुसने न पाए कोई  'नकाबधारी'
तलाश है एक ऐसे घर की!!

Sunday, July 29, 2018

एक मौन हो ऐसा!

एक मौन हो प्रलय सा
जहां से 'मनु' ने शुरू की थी
'चिंता से आनंद' की यात्रा

मौन ही मेरा श्रृंगार हो
मौन ही मेरी शक्ति
मौन ही मेरा मान हो
मौन ही मेरी अभिव्यक्ति

मौन हो ऐसा....

जैसे सृष्टि की हर लय में
एक मौन मुखर है
सूर्य के प्रखर का मौन
चंद्रमा की चांदनी का मौन
एक मौन पूर्णता का
एक मौन अमावस का
धरती के धैर्य का मौन
समंदर की गहराई का मौन
औ' मौन कैलाश शिखर सा
वह मौन...जो तेज है
सृष्टि के हर अलंकार का

शब्द तो श्लोक थे
शब्द थे आशीर्वचन
शब्दों की लोरी थी
तो शब्दों में पिरोया नेह था
शब्द महाकाव्य थे
औ' महाभारत में भी गीता थी

पर शब्द आज कोलाहल हैं
शब्द हैं आज केवल प्रहार बने
शब्द आज विद्रूप हैं
शब्द हैं छिद्रान्वेषण
शब्द आज घृणा हैं
औ' शब्द आज तिरस्कार भी
शब्द तो अनेक हैं
पर नहीं हैं..
सुकून, प्रेम, आनंद के शब्द

इसलिए एक मौन हो मेरे अंदर
ऐसा मौन..
जो है व्याप्त सृष्टि के अंत से अनंत तक!!