Sunday, July 29, 2018

एक मौन हो ऐसा!

एक मौन हो प्रलय सा
जहां से 'मनु' ने शुरू की थी
'चिंता से आनंद' की यात्रा

मौन ही मेरा श्रृंगार हो
मौन ही मेरी शक्ति
मौन ही मेरा मान हो
मौन ही मेरी अभिव्यक्ति

मौन हो ऐसा....

जैसे सृष्टि की हर लय में
एक मौन मुखर है
सूर्य के प्रखर का मौन
चंद्रमा की चांदनी का मौन
एक मौन पूर्णता का
एक मौन अमावस का
धरती के धैर्य का मौन
समंदर की गहराई का मौन
औ' मौन कैलाश शिखर सा
वह मौन...जो तेज है
सृष्टि के हर अलंकार का

शब्द तो श्लोक थे
शब्द थे आशीर्वचन
शब्दों की लोरी थी
तो शब्दों में पिरोया नेह था
शब्द महाकाव्य थे
औ' महाभारत में भी गीता थी

पर शब्द आज कोलाहल हैं
शब्द हैं आज केवल प्रहार बने
शब्द आज विद्रूप हैं
शब्द हैं छिद्रान्वेषण
शब्द आज घृणा हैं
औ' शब्द आज तिरस्कार भी
शब्द तो अनेक हैं
पर नहीं हैं..
सुकून, प्रेम, आनंद के शब्द

इसलिए एक मौन हो मेरे अंदर
ऐसा मौन..
जो है व्याप्त सृष्टि के अंत से अनंत तक!!



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