Saturday, October 19, 2013

उसकी अंतर्वेदना मेरी कलम से..........

मुझे मालूम है पापा
आप आओगे
पर कब आओगे
इतना बता दो....!

आप चले गए हो तो
ऐसा लगता है
जिंदगी से मासूमियत चली गई
आप चले गए हो तो
ऐसा लगता है
वह बच्ची भी चली गई
जो मेरे अंदर बसती थी.... !

पापा, मुझे वक्त ने
बहुत बड़ा बना दिया है
क्योंकि, मेरे अंदर की बच्ची
चली गई आपके साथ
अब शेष है तो केवल
आपके कंधे की जिम्मेवारियां
जो मेरे कंधे पर आ पड़ी हैं
पर मुझे कोई शिकायत नहीं
बस आप आ जाओ
और मुझे मेरा बचपन लौटा दो
फिर सब समेट लुंगी
हंसते-गाते..... !

मां तो आपसे शिकायत भी करती हैं
और रुठती भी हैं
पर मैं तो कुछ भी नहीं कहती
बस मौन याद करती हूं
एकटक राह तकती हूं
इसलिए, पापा अबकी आप
सीधे मेरे पास ही आना
मेरे पास ही रहना
मां फिर भी खुश होंगी.... !

पापा, मेरे अंदर एक दरिया है
जिसमें तैरता है आपकी यादों का कलश
कभी उमड़ता है,
कभी घुमड़ता है,
पर हर जतन कर संभालती हूं
कहीं छलक न जाए
पर जब आप आओगे
बह जाने दूंगी इसे
और मांगूंगी हिसाब
उन पलों का जब आप नहीं थे
खोलुंगी डाटों के पोटली की सौगात
जो आपकी ही दी हुई है
और पुछुंगी,
क्यों की गलती जाने की.... !

पापा, मुझे मालूम है
इन यादों के अमूर्त रुप में
आप यहीं आस-पास हो
मुझे मालूम है
आप सदेह भी आओगे
बस इतना बता दो
कब आओगे.... !

पापा, मैं मेरे मन की बात
किसी से नहीं कहती
डर, लगता है
कहीं लोग मुझे पागल न समझें
पर आप ही बताओ
किसी का इंतजार क्या पागलपन है
और फिर मुझे तो मालूम है
आप आओगे
बस इतना बता दो
कब आओगे.... ! (एक दोस्त के लिए)

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