हृद्य को वेधता यह मौन
कभी तो मुखर होगा
सांसो के लय को छेड़ता यह बोझ
कभी तो सहज होगा
बेड़ियों में जकड़ी यह काया
कभी तो मुक्त होगी, प्रभु मेरे....!
हवाओं में बिखरा यह मौन
कभी तो मुखर होगा.... !
दूर जाते कदमों की आहट
कभी तो थमेगी
मुंडेर पर बैठी गौरेया
कभी तो अंदर आएगी
बादलों की आंख मिचौली के बीच
कभी तो सूरज निकलेगा, प्रभु मेरे.... !
लिहाफ की तरह लिपटा यह मौन
कभी तो मुखर होगा..... !
हृदय को वेधता यह मौन
कभी तो मुखर होगा, प्रभु मेरे..... !
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