" रोटी की बोटी नोचते चंद हाथ
हड्डी के एक टूकड़े पर टकराते चंद चेहरे "
यह दृश्य किसी मलिन बस्ति का नहीं
भूखे नंगों की यह वह टोली है
जो बेतहाशा भाग रही है
एक सफेदपोश नकाबधारी के पीछे
महत्वकांक्षाओं के गर्त की ओर।
जिनके लिए बहुत सहज है
बेवजह उठाना, गिराना, पटकना,
संवाद के ये 'बुद्धिजीवी' व्यापारी
एक ऐसा निर्वात पैदा करते हैं
कि आपकी आवाज, आप तक रह जाए
ऐसे में बदलाव के सपने से शुरू
घुटन भरी इस मौत के सफर में
जो दम तोड़ रहा वो केवल एक आवाज नहीं
बल्कि संवाद में आस्था का एक स्तंभ भी है।।।।।
हड्डी के एक टूकड़े पर टकराते चंद चेहरे "
यह दृश्य किसी मलिन बस्ति का नहीं
भूखे नंगों की यह वह टोली है
जो बेतहाशा भाग रही है
एक सफेदपोश नकाबधारी के पीछे
महत्वकांक्षाओं के गर्त की ओर।
जिनके लिए बहुत सहज है
बेवजह उठाना, गिराना, पटकना,
संवाद के ये 'बुद्धिजीवी' व्यापारी
एक ऐसा निर्वात पैदा करते हैं
कि आपकी आवाज, आप तक रह जाए
ऐसे में बदलाव के सपने से शुरू
घुटन भरी इस मौत के सफर में
जो दम तोड़ रहा वो केवल एक आवाज नहीं
बल्कि संवाद में आस्था का एक स्तंभ भी है।।।।।
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