Monday, January 5, 2015

जी लेने दो...

जी लेने दो दोस्त,
उसे जी लेने दो
दुनिया की प्याली में
जिन्दगी का जाम
पी लेने दो.....।
खट्टी-मीठी,  नमकीन
हर स्वाद से लबरेज़
जिंदगी, जी लेने दो....।
कल जब
किसी मोड़ पर टकराये तो
उसकी आँखों में
शिकायतों का पुलिंदा न हो....
कि मेरी मखमली पैरहन तले
वह अछूता रहा
किसी पागल बसंती बयार से
मौसम की करवटों से
सर्द हवाओं से
गर्म थपेड़ों से....।
उसकी आँखों में
मुझे भेदते प्रश्न न हो....
कि क्यों खो जाने दिया मैंने
मेरे सदाबहार में
उसके हिस्से की हरियाली
और बंजर
उसके रास्ते का समतल
और ढ़लान....।
इसलिए उसे जी लेने दो,
जी भर के
जिंदगी के हर आडम्बर
और चकाचोंध को पी लेने दो,
जी भर के.....।
कल जब
वो मुझसे मिले
तो उसकी आँखों में
न शिकायते हों, न सवाल
न झूठ का पर्दा हो
न कुछ छूट जाने की कसक
बस हों मैं और वो...।
वो तब बस मुझसे मिले
मिले उस किताब से
जिसके पन्नों को उसने
पलटा था बेतरतीब
पढ़ने की ख्वाहिश जता
वो बढ़ गया आगे
और पन्ने फड़फड़ातेे रहे....
अब वो जब भी मिले
उसकी हाथों में
बस वही एक किताब हो....
तब तक दोस्त
जी लेने दो उसे....।
तुम पूछोगे कि
कब तय है मिलने का वो पल
नहीं जानती मैं
पर कहते हैं कि
निर्णय का दिन नियत है
जब नंगी सच्चाईयां
खड़ी होती हैं आमने-सामने।।।।।

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