Saturday, January 24, 2015

क्या ज़िन्दगी है..!

वाह क्या ज़िन्दगी है....
रुई से भी लगती हल्की है

न छत है, न ज़मीं
न दर है, न दीवार
न घर है, न द्वार
न शहर है, न शाम
पर है बड़ा आराम ...
वाह क्या ज़िन्दगी है....
फूल से भी लगती हल्की है

न कुछ खोने का भय है
न कोई आस
न उम्मीदोँ का बोझ है
न कोई लड़ाई
न कोई शिकवा, न गुंजाइश
बस एक लय है, ताल है
एक सतत् प्रवाह है
वाह क्या ज़िन्दगी है...
हवा से भी लगती हल्की है

बस एक छोटी सी तिज़ोरी है
जिसमें तुम हो, वे हैं
और हैं कुछ यादें
कुछ मीठे-मीठे रिश्ते
कुछ मिठी-मिठी बातें
एक डोरी है एहसासों की
एक मोती स्वाभिमान की
बस है वही एक नन्ही तिज़ोरी
जो है मेरा गुरुर , मेरा सुकून
औ' उन सबसे अनमोल, जो नहीं हैं
वाह, क्या जिंदगी है.....।

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