जो द्वार तुम खोल गए
उसका मैं क्या करूँ
जिन हिमखंडों को तुम तपिश दे गए
उनका मैं क्या करूँ.....
हड्डियों को गलाती
कभी बर्फीली हवाएँ अंदर आती हैं
तो कभी लू के थपेड़े
झुलसा जाती हैं....
अंतस के किसी भी कोने में
न गर्माहट है, न शीतलता
मैं क्या करूँ????
जो द्वार तुम खोल गए
उसका मैं क्या करू....
कुंजी तो तुम्हारे पास है।।
एक सैलाब सा उमड़ रहा है
दरिया का तट बस डूबने को है
न जाने क्या बह जाएगा
क्या रहेगा शेष
मैं क्या करूँ????
जिन हिमखंडों को तुम तपिश दे गए
उनका मैं क्या करूँ
बंधन तो तुम्हारे पास है।।
जो द्वार तुम खोल गए।।।।
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